उन्नाव। शायद ये कहावत ठीक ही है "भूख न जाने जाति और पाति" यह कहावत उन्नाव मे 9 साल की बच्ची रीता के ऊपर सच हुई, जब बचपन में माँ के मरने के बाद और गरीबी झेल रहे पिता द्वारा भरपेट खाना न दे पाने के बाद ही रीता अपनी भूख बर्दाशत नही कर पायी और एक अनोखी हैरान करने वाली बच्ची बन कर उभरी। रीता 9 साल की हो चुकी है और अब वह कांच, लोहा,प्लस्टिक ऐसे खा जाती है मानो जैसे वह उसके प्रतिदिन का एक हिस्सा बन गया हो वहीं ऐसी हैरान कर देने वाले घटनाक्रम के बाद पूरी तरह स्वस्थ रीता को देख ग्रामीण हैरानी जताते हैं।
आगज़ इंडिया के रिपोर्ट के मुताबिक, उन्नाव के चकलवंसी गांव के मजरे क्षेत्र की रहने वाली रीता भले ही 9 साल की हो गई है और लोहा, कांच, प्लास्टिक उसके प्रतिदिन के खाने का हिस्सा बन चुका हो लेकिन यह रीता का शौक नही है बल्कि यह उसकी मजबूरी थी जो अब उसकी हैरान करने वाली आदत मे बदल गई है। रीता जब 4 साल की थी तो उसकी माँ के स्वर्गवास हो गया था जिसके बाद गरीब पिता दो वक़्त की रोटी के जुगाड़ करने मे जुट गया और वहीं भूख से बिलबिलाई रीता ने प्लास्टिक,लोहा और कांच खाना शुरू कर दिया था फिर क्या था देखते-देखते जैसे जैसे रीता बड़ी होती गई और जब भी रीता को भूख का एहसास होता तो वह कूड़े के ढेर की तरफ बढ़ जाती और लोहा, कांच और प्लास्टिक खाकर अपनी भूख मिटाती रहती और ये घटना जो आज हम सब को सुनने में ही हैरान कर दे रही है पर वहीं 9 साल की लाचार रीता ने जब प्लास्टिक,लोहा और कांच खाना शुरू किया होगा तो वो भी कुछ ऐसे ही हैरान हुई होगी।
रीता की दादी, छेदाना से आगे हुई बातचीत में छेदाना जी ने कहा कि रीता के मां के मरने के बाद रीता का पूरी तरह ख्याल न रख पाने का मलाल आज भी मेरे मन मे कसक बन कर है, और मैं इस बात को मानती हूं कि आज रीता को जो प्लास्टिक,लोहा और कांच खाने की आदत बन चुकी है उसके लिए उसकी देखभाल मे कमी एक बहुत बड़ी वजह है, और स्थानीय पड़ोसी सुरेन्द्र ने बताया कि, जहां रीता का गरीब लाचार पिता रोजी रोटी की आस में घर से बाहर घूमता रहता था, तो वही रीता बचपन से ही भूख मिटाने के लिए लोहा, ब्लेड और प्लास्टिक के कैसेट खाकर अपना गुजारा करती रहती थी।
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